तेरे उस सफ़ेद कोहरे ने ही तो निखारी थी मेरी मोहब्बत वो गलियाँ याद हैं; तेरी सर्द सर्दी में गुल्फ़ाम होना भी याद है तेरे उस सफ़ेद कोहरे ने ही तो निखारी थी मेरी मोहब्बत वो गलियाँ याद हैं; तेरी सर्द सर्दी में गुल्फ़ाम होना भी याद है और याद है मेरी बेवफ़ाई; वो गलियाँContinue reading “वो कोहरा”
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यादगार पल
सुन के तुम्हें आज एक बोझिल अहसास हुआ, सुन के तुम्हें आज एक बोझिल अहसास हुआ, एक उम्र के ज़ाया होने का मलाल हुआ सुन के तुम्हें आज एक बोझिल अहसास हुआ, एक उम्र के ज़ाया होने का मलाल हुआ पहचान तो अपनी बरसों की है, पहचाना तुम्हें मैंने आज ही है पल कोई यादContinue reading “यादगार पल”
तुम्हारी उड़ान
क्यूँ टोकता हूँ तुम्हें, ख़ुद मन की करता हूँ…क्यूँ रोकता हूँ तुम्हें छोटी सी ही बात पर क्यूँ परेशान करता हूँ तुम्हें, प्यार करता हूँ तो जवाब क्यूँ माँगता हूँ, और फिर नज़रें क्यूँ नहीं मिला पाता हूँ सुनोगी मेरी हमेशा ऐसा तो नहीं सोचता, करोगी मेरी कही ये भी नहीं जँचता, फिर क्यूँ ऐसाContinue reading “तुम्हारी उड़ान”
ठहरो कुछ देर
थम गयी है ख़त्म ना होने वाली दौड़, सोचा ना था कि ऐसा भी आ सकता है एक मोड़ सर्व शक्तिमान को एक सूक्ष्म ने दिया है तोड़, क्या प्रकृति सिखा रही है अब रहना है दिलों को जोड़? शांत है गगन और चुप है धरा…नज़रें घूमाईं तो देखा मुन्नी के चित्रों में है जादूContinue reading “ठहरो कुछ देर”
विश्व तीर्थ
क्यूँ कर जाऊँ मैं काशी द्वारका हरिद्वार , क्यूँ करूँ तीर्थ मैं जीवन में बस एक बार क्यूँ कर जाऊँ मैं काशी द्वारका हरिद्वार , क्यूँ करूँ तीर्थ मैं जीवन में बस एक बार विश्वास भक्ति करुणा की नित्य है पुकार; विश्वास भक्ति करुणा की नित्य है पुकार, नित्य ही कैसे तीर्थ हो आऊं औरContinue reading “विश्व तीर्थ”
दिल का पुल
एक खाई है जो हम दोनों ने आज बनाई है, एक खाई है जो हम दोनों ने आज बनाई है; नफ़रत की कुदाल से दूरी और बढ़ाई है एक खाई है जो हम दोनों ने आज बनाई है, नफ़रत की कुदाल से दूरी और बढ़ाई है ग़िले यूँ तो बहुत हैं, हर गहरे ख़्वाब केContinue reading “दिल का पुल”
मेघ कान्हा
मेघ धरा लिप्त हैं आज मिलन ऋतु की वर्षा में, झूम रहीं हैं वृक्ष गोपियाँ कान्हा के प्रेम की बरखा में मेघ धरा लिप्त हैं आज मिलन ऋतु की वर्षा में,झूम रही हैं वृक्ष गोपियाँ कान्हा के प्रेम की बरखा में तपती विरह का अंत है आज, हर रूठी गोपी कान्हा में लिप्त है आज,Continue reading “मेघ कान्हा”
महकता बचपन
एक बचपन दिखा आज…खोया सा, रोया सा, मुरझाया सा; रज़ाई की गर्माइश को ललचाता…ठिठुरा सा, सकुचाया सा कूड़े के ढेर में सुक़ून तलाशता, थकी आँखों से एक ख़ामोश सवाल पूछता इंसानी दरज़ों से समझौता सा करता, इस जहाँ में अपनी जगह टटोलता बचपन में बचपने से अनजान, टूटे हुए गुड्डे गुड़ियों के लिए बनाता रेतContinue reading “महकता बचपन”
अधूरा मैं
क्या अधूरा हूँ मैं…ख़ुद से रूबरू अभी हुआ नहीं हूँ मैं; क्या अधूरा हूँ मैं…ख़ुद से रूबरू अभी हुआ नहीं हूँ मैं नये पन्ने उलट रहे हैं रहस्यमयी किताब के, मुख़्तलिफ़ मुलाक़ातें करवा रहे हैं खुद अपने ही आप से कहाँ छुपे थे तुम…शायद किसी से डरे हुए थे तुम; क्या सही वक्त का इंतज़ारContinue reading “अधूरा मैं”
अनगिनत तारों का क़स्बा
क़स्बा है एक, दो बसों के सफ़र दूर, पहुँचते ही जहां मैं जाया करता था बेहद रूठ ना पहाड़, ना समुंदर, ना जंगल…बीती हैं बचपन की छुट्टियाँ करते मच्छरों से दंगल धूल, गोबर और कूड़ा…बचते बचाते चलो नहीं तो सन जाओगे पूरा बल्ब और पंखों की सदा थी गर्मियों की छुट्टी…कभी क़भार आ के बिजलीContinue reading “अनगिनत तारों का क़स्बा”