
हर ज़ख़्म है नज़र मेरे गुनाह को, बहे तुम्हारे हर आँसू को
हर ज़ख़्म है नज़र मेरे गुनाह को, बहे तुम्हारे हर आँसू को
चीखता है दिल, रोते हैं अरमान, सिसकती है ये जान
चुप करा लेते हैं, ये सोच के की तुमने भी तो सहा है ये अंजाम
टूटे रिश्तों में अब भी धड़क रही है दर्द की एक दास्तान
वो सुबह कुछ और होगी
वो सुबह कुछ और होगी जब ओस की मरहम छुएगी इस दिल को
तुम भूल जाओगे हमें और नयी कलियाँ गुलज़ार होंगी
नए अरमानों की नयी फ़िज़ा, एक नयी दुनिया में तुम्हें ले जाएगी
तब शायद ये ज़ख़्म भी भरें, पर याद सदा रहे, कि और आँसू ना बहें जब तक हम रहें