
क्या अधूरा हूँ मैं…ख़ुद से रूबरू अभी हुआ नहीं हूँ मैं; क्या अधूरा हूँ मैं…ख़ुद से रूबरू अभी हुआ नहीं हूँ मैं
नये पन्ने उलट रहे हैं रहस्यमयी किताब के, मुख़्तलिफ़ मुलाक़ातें करवा रहे हैं खुद अपने ही आप से
कहाँ छुपे थे तुम…शायद किसी से डरे हुए थे तुम; क्या सही वक्त का इंतज़ार कर रहे थे…या मुझे आज के लिये तय्यार कर रहे थे
दो पल रूठा था मैं तुमसे…क्यूँ देर कर दी मिलने में मुझसे। दो पल रूठा था मैं तुमसे…क्यूँ देर कर दी मिलने में मुझसे
पर तुम तो अपने हो…मेरे ही प्रतिबिम्ब हो, देर से ही सही, अब तुम खिल तो रहे हो
हाँ अधूरा था मैं…खुद से रूबरू नहीं हुआ था मैं। हाँ अधूरा था मैं…खुद से रूबरू नहीं हुआ था मैं
अब नये पन्नों का है इंतज़ार…नयी जीवन रचना का सृजन कर पाऊँ फ़िर एक बार। अब नये पन्नों का है इंतज़ार…नयी जीवन रचना का सृजन कर पाऊँ फ़िर एक बार
सदा अधूरा ही रहूँ, ख़ुद से नयी मुलाक़ातें यूँ ही करता रहूँ
एक नयी पहचान यूँ ही बनाता रहूँ…एक नयी शख़्सियत यूँ ही निखारता रहूँ
ये बहुत बढ़िया है।
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बहुत धन्यवाद।
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Badhiya
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बहुत शुक्रिया।
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Welcome
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Speechless…… touch my soul too….☺☺
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