
कुछ यूँ तो नहीं बुननी चाही थी ज़िंदगी
ख़्वाबों के रेशम पर हक़ीक़त के पैवंद खींचती, मजबूर ज़िंदगी
गुत्थियों से जूझती, पल पल उलझती, उधड़ती ज़िंदगी; जवाबों से डरती, सकपकायी, हैरान ज़िंदगी
कौन खींच रहा है ये डोर; लेते गए क्यूँ ग़लत मोड़
किसपे खीजें ये समझ नहीं आता; शायद जानते हैं, पर हिम्मत नहीं जुटा पाता; किसपे खीजें ये समझ नहीं आता; शायद जानते हैं, पर हिम्मत नहीं जुटा पाता
वक़्त से या रब से गुहारें, किस शमशान में उन क़त्ल पलों को पुकारें; डरता हूँ कहीं जाग ना जाएँ, मुझे आईना ना दिखा जाएँ
अजीब कैफ़ियत है ये, इंसान यूँ ही क़ुर्बान हैं रिवायतों पे
दफ़नाते रहो दर्द को, जलाते रहो अरमानों को; दफ़नाते रहो दर्द को, जलाते रहो अरमानों को
ख़ुशियाँ तो एक सराब हैं, तुम मिटाते चलो हर जज़्बात को
कुछ यूँ तो नहीं बुननी चाही थी ज़िंदगी; बस गुज़रती, पछताती ज़िंदगी
मुस्कुराहट की आहट से भागती, ग़म को ही अपना आशिक़ समझती, बस भटकती सी ज़िंदगी
आसां नहीं है ख़ुशियों के घरोंदे तक का सफ़र; आसां नहीं है ख़ुशियों के घरोंदे तक का सफ़र
सौदागर है तक़दीर, ग़म के सिक्कों की ही करती है कद्र; सौदागर है तक़दीर, ग़म के सिक्कों की ही करती है कद्र
ज़िंदगी रहती है तो रहे बेसब्र
सफ़र में कुछ फूल भी मग़र खिलाए हैं…ऐसा नहीं की बस आँसू ही बहाए हैं
तक़दीर उतनी भी बेज़ार नहीं अभी…सोचा तो लगा वो घरोनदा कहीं मुझमें ही तो नहीं…
अब धूल ना पड़ने पाए इन फूलों पर…अब धूल ना पड़ने पाए इन फूलों पर
ज़िंदगी का अब यही पैग़ाम तो नहीं
Incredible…..
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👌
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Thank you!
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👌👌
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So meaningful and true….
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