
शाइस्ता है मोहब्बत, हर ज़ुल्म पे मुस्कुरा देती है…शाइस्ता है मोहब्बत, हर ज़ुल्म पे मुस्कुरा देती है
नासमझ है तू, ये समझ के माफ़ कर देती है
कितने पहाड़ कितने मील ज़ाया किए तूने…कितने पहाड़ कितने मील ज़ाया किए तूने
ख़ुदा तो ख़ुद ही में है, ये पहचाना नहीं तूने
सजदे में किसके झुकता है हर रोज़…सजदे में किसके झुकता है हर रोज़
दिखता नहीं, एक एहसास है वो…हमेशा तेरे पास है वो; पहचान उसे…पहचान उसे, नहीं तो हर सजदा है बस एक अफ़सोस
रात अंधेरी नहीं है मोमिन…वो नूर अब भी रोशन है तुझमें
रात अंधेरी नहीं है मोमिन…वो नूर अब भी रोशन है मुझमें
बस हटे अब ये नफ़रत की गर्द, बहुत हुई इंसानियत ज़र्द
क़द ओ कामत ख़ुदा सा है जिसका… क़द ओ कामत ख़ुदा सा है जिसका; मोहब्बत ही है नाम उसका
मोहब्बत ही है मज़हब…मोहब्बत ही है दीन…मोहब्बत ही है वो नूर जिसे ढूँढते भटका तू कितना दूर
ये शमा ना बुझे अब…रोशन रहे ये जहां अब; ये शमा ना बुझे अब…रोशन रहे ये जहां अब
शाइस्ता है मोहब्बत…बस सुकून में रहे इनसाँ अब